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Sunday, March 3, 2024

7.0 "मेरा मत" ईश्वर की अवधारणा १०वां आलेख।

पिछले आलेख में छोटे लड़के विशाल ( हौवी) का पुछना कि नेपाल में हनुमान जी का चेहरा अपने यहाँ के हनुमान जी के चेहरे से बदला हुआ क्यों है? यह प्रश्न १२ साल के लड़के का था और बड़े लड़के की सोंच कि ये मुर्तिया काल्पनिक है, और पूजा पाठ ढकोसला है। क्योंकि हिन्दू धर्म के आधार वेद, पुरान, महाकाव्य मसलन महाभारत, रामायण आदि सब के सब पुष्यमित्र सुन्ग के समय रचा गया है। यहाँ तक कि धर्म शब्द की अवधारणा और उत्पत्ति भी उसी के समकालीन या उसके बाद की है। इन्हीं बातों का अनुसरण छोटा लड़का भी करने लगा है। मुझे 2022/23 में लगातार दोनों के साथ रहना पड़ा है। विशाल मुझे प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी कराया। दोनों इन्जीनियर है। ये घटनाएं मुझे " मेरा मत " निर्धारण करने की प्रेरणा दिया। ये आलेख इसी का परिणाम है। पूर्व इसके कि ईश्वर की अवधारणा पर लिखूँ, यहाँ दर्शन अर्थात दृश्य/दृष्टि (आंख) से उत्पन्न चित्र कला-मूर्ति कला, श्रवण अर्थात सुनने (कान) और मुंह से उत्पन्न संगीतऔर आंख तथा कान के संयुक्त योग से उत्पन्न नृत्य कला कौ माने तो उचित जंचता है। कहने का तात्पर्य यह कि अनपढ़ आदि मानवों के, अंगों द्वारा उकेरे गए सतत् प्रयास और करोड़ों / अरबों वर्षों का क्रमिक उत्थान से इनका आज यहाँ तक पहुचना संभव हुआ है। नाक के माध्यम से हीं श्वास की साधना से योग का भी क्रमिक विकास अरबों वर्षों में हुआ है। लिपि भी चित्र के माध्यम से ही पनपा और एक परिष्कृत रूप में विकसित हुआ। यह अलग बात है कि मुंह से स्वभाविक उच्चरित ध्वनि से लिपि बना या लिपि निर्माण के बाद उसका उच्चारण निर्धारित किया गया, यह शोध का विषय है। शुन्य से नौ तक का अंक भी मानव अंगों की अवधारणा है, जिसे ऊपरी अंगों की विभिन्न मुद्राओं के रेखा चित्र से उकेरा गया है। मसलन मुट्ठी बांधकर एक हाथ ऊपर उठाने १ बनेगा, दोनों हाथों को खोलकर ऊपर उठाऐं और वायीं तथा दायीं तरफ लाएंं / दाहिने और ऊपर खड़ा करें २,५,८ बनेगा, दोनों हाथों को र्कौस करके रखें ४ बनेगा, दोनों हाथों के साथ गर्दन का वायें और दाहिने ओर का रेखा चित्र ३ और ६ बनाते हैं, और तर्जनी उंगली इंगित करते हुए गर्दन का रेखा चित्र ९\√ उकेरते हैं।इतना कहने का आशय यह है कि प्रकृति का सब कुछ सभ्यता और,संस्कृति के क्रमिक विकास से ही संभव हुआ है, मूल रूप में ऐ मानव अंग से ही तो है। जिनका शब्द और भाषाओं की अवधारणा के बहुत पहले निर्माण शुरु हुआ है। मसलन् मानव मष्तिक का खुशियाँ तलाशते हुए‌ विकसित होते जाना और विचारों का समय समय पर और अधिक जानकारी ग्रहण करने की स्थिति और उनका क्रियान्वयन का अभ्यास,सभ्यता और संस्कृति को क्रमशः विकसित किया है। इन्हीं में से एक प्रक्रिया है जो परमालय और परमानंद की आकृति में मानवों के मष्तिष्क का केन्द्रीकरण / विचारों का संश्लेषण और अधिकतम आनंद प्राप्त करने की चाह सभ्यता में सबकुछ का निर्माण किया है। वहीं जिस मुद्रा में निरंतर अंतह लीन करोड़ों करोड़ मानव की चेष्टाऐं केन्द्रित हुई है, विचारों का संश्लेषण हुआ , वहीं एक नई उर्जा का निर्माण हुआ, (जैसे प्रकाश के लेन्स से ताप ऊर्जा का निर्माण होता है), विचारों का संश्लेषण जिसका निरंतर संवर्धन होता चला गया। औरमानव, विचार की तल्लीनता में उस उर्जा को आस पास महसूस करने लगा। जिससे उन्हें सुकून और शांति मिलता था। कालांतर में उस निर्मित ऊर्जा को हीं ईश्वर कहा जाने लगा। जो कि सर्वमान्य था और आज भी है। अतः मानव से ही ईश्वर की उत्पत्ति हुई। मानव ने ही कथा, कहानी और मिथकों का कालांतर में निर्माण किया, चित्र उकेरे गए, मूर्ति बने, परमालयों को मंदिर कहा गया, उसमें साकार/निराकार संजीविता का बोध कराया गया और पूजा पाठ होने लगा। जिनका उल्लेख विगत आलेखों में विस्तार से है। यही ईश्वर अवधारणा का मूल है जो मानव कृत है। (क्रमशः) samalak.blogspot.com, Mo.No.+917209834500, लेखक- अनिल कुमार सिन्हा ,03/03/2024 email id-samalak1984@gmail.com पता-समालक सदन ,पुरनचंदलेन,कल्याणी , मुजफ्फरपुर-842001,बिहार,भारत।

Thursday, February 22, 2024

लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का जनतांत्रिक स्थिति

लोकतंत्र में चुने हुए प्रतिनिधिओं का दलबदल मतदाता के अधिकार और विश्वास के साथ धोखाधड़ी/420 सी है। जिस पार्टी का प्रतिनिधित्व करतें हैं, यह उनका मौलिक अधिकार है कि उक्त दल में रहें या नहीं रहें, इस्तीफा दें। परन्तु उन्हें संविधान सम्मत कोई अधिकार नहीं है कि मतदाता का विश्वास तोड़ कर दूसरे पार्टी में जाऐं। यह कानून जुर्म है। क्या जुडिशरी सुमोटो संज्ञान लेगी ?

Sunday, February 11, 2024

इस बार का अर्थात 2024 का होलिका दहन " ईवीएम/ वीवीपेट और गोदी मीडिया के नये/पुराने अखबारों से मनाया जाए! क्यों ?

इस बार का अर्थात 2024 का होलिका दहन " ईवीएम/ वीवीपेट और गोदी मीडिया के नये/पुराने अखबारों से मनाया जाए! क्यों ?

Monday, January 29, 2024

6.8 "मेरा मत" ईश्वर की अवधारणा ८वां आलेख।

मानव के प्रादुर्भाव से लेकर आज तक का काल विभाजन और तरीके अलग अलग हैं,जिसकी चर्चा पिछले आलेख में है। यहाँ पहले उन कालखंडों को स्पष्ट करना चाहते हैं। ऐसा वर्णित है कि हिन्दू धर्म २०००० साल पुराना है। इतिहास और पुरातत्व सर्वेक्षण से इसे ५००० साल पुराना माना गया है और आज का हिन्दू धर्म अधिकतम २३०० वर्षों पहले भारत के सुन्ग डाइनेस्टी से उसमें भी पुष्यमित्र सुंग कार्यकाल में फला फुला है। जैन घर्म उससे ३०० वर्ष पहले और जैन के ४०-५० वर्षों बाद बुद्ध धर्म का अस्तित्व वर्णित है। और उसके बाद के यजीदियों, यहुदियों, ईसाई, इस्लाम आदि धर्मों का उल्लेख मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि २०००० से २३०० वर्षों के बीच सनातन पद्धति को ही हिन्दू धर्म कहा जाता था,और उसी सनातन जीवन शैली के सभ्यता/ संसकृति, उस समय के हिन्दू धर्म में अपनाया गया। उक्त हिन्दू धर्म में अपनाए मानवीय मूल्यों में हो रहे ह्रास को पुनः प्रकृति के करीब लाने के लिए, सुधार के लिए हीं ,जिसके मध्य में जैन और बुद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ। फिर २३०० वर्षों पहले हिन्दू धर्म के संरक्षण और विस्तार के लिए आज के प्रचलित कथाओं और कहानियों को निर्मित कर विभिन्न देवताओं, राक्षस, यक्ष,परियाँ, स्वर्ग-नरक आदि आदि का निर्माण हुआ। (क्रमशः) samalak.blogspot.com, Mo.No.+917209834500, लेखक- अनिल कुमार सिन्हा ,22/12/2023 email id-samalak1984@gmail.com पता-समालक सदन ,पुरनचंदलेन,कल्याणी , मुजफ्फरपुर-842001,बिहार,भारत।

Thursday, January 25, 2024

6.9 "मेरा मत" ईश्वर की अवधारणा 9वां आलेख।

ईश्वर की अवधारणा के पांच फैक्टर हैं:- (१) विचार एक बल है। (२) सनातन जीवन शैली का परमालय में स्थापित परमानन्द और परमपींड की आकृति। (३) सनातन से पनपे वाद मसलन हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि का काल डिवीजन (४) परमानन्द आकृति में विचार बल का संश्लेषण और (५) कड़ोरों अरबों वर्षों तक उक्त संश्लेषण प्रक्रिया का निरंतर जारी रहना,जिससे एक नई उर्जा का प्रकटीकरण हुआ। मुख्यतः इन्हीं बिन्दुओं पर इस आलेख में विश्लेषण किया जाएगा। आज से २०००० साल पहले सनातन जीवन शैली को हीं हिन्दू हिन्दू कहा जाने लगा।तब वह हिन्दू प्रकृति परक जीवन पद्धति ही थी, सनातन का पर्याय हीं हिन्दू था।उस समय किसी भी धर्म की अवधारणा नहीं थी। सनातन को हिंदू कहनेवाले आज से २३०० वर्षों पहले मौर्य डयनेस्टी के बाद के सुन्ग डयनेस्टी के सम्राट पुष्यमित्र सुंग के कार्यकाल में या तीन चार सदी पहले धर्म शब्द की उत्पत्ति हुई।तब से इसे हिन्दू धर्म कहकर ढ़ोल नगाड़े पिटे जाने लगे। सनातन- हिन्दू और आज का प्रचलित धर्म- हिन्दू दोनों अलग अलग तरह का कन्सेप्ट है। धर्म- हिन्दू में इतिहास के यशस्वी रजाओं को देवता और दानव बनाया, और कहानियाँ लिखी जाने लगी। चुकि उसे जैनिज्म और बुद्धिज्म को दबाकर उक्त हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार करना था,इसलिए वे ऐतिहासिक और वर्तमान यशस्वी राजाओं को महिमामंडन करने के लिए हिन्दू धर्म के ग्रन्थों का कवियों,लेखकों को प्रोत्साहित कर लिखवाया गया। इतना ही नहीं विशिष्ट तारा,ग्रहों, उपग्रहों को, खतरनाक और हिन्सक जानवरों को देवताओं और अत्यधिक उपयोगी पशुओं को उन कथाओं, ग्रन्थों में उचित स्थान दिये गए और समन्वित किया गया अधिकतर पशु प्राणी को उन देवी देवताओं का वाहन बना दिया। परमालय और बाद के आनंद बिहार के जैसा, बड़े बड़े मंदिरों का निर्माण किया गया। मन+ दिर= मंदिर अर्थात मन का तात्पर्य विचार + "दिर'" शब्द से संबंधित परिणामबिना बिलंब के, तुरंत, शीघ्र, तत्क्षण, फ़ौरन ।बना।वहीं से मुर्ति पूजा की शुरूआत है। ए मूर्तियां देश काल, और परिस्थितियों के अनुरूप अलग अलग आकृतियों में निर्मित हुआ। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि मेरा छोटा बेटा विशाल, जब मैं मोतियाबिंद का आपरेशन करवाने नेपाल गया था तो वहाँ हनुमान जी की मूर्ति देखकर कहा था," डैडी, यहाँ के हनुमान जी का मुंह अपने यहाँ के हनुमान जी से अलग है !" यह सुनकर मैंने भी गौर किया और सोंचने लगा। खैर,यह सबकुछ कवि, लेखकों की कल्पना की देन है। वातावरण ऐसा निर्मित हुआ कि उन अकृतिओं में क्रमशः कड़ोडो़ं मानव की भावना और विचार-वल का संश्लेषण हुआ। विचार तरंगों एक बिन्दु पर इकट्ठा होते हीं एक नई उर्जा की उत्पत्ति हुई। इसे हीं ईश्वर, परमेस्वर, परमेस्वरी गौड गौडेस कहा जाता है। अतः यहाँ सुनिश्चित करना चाहिए कि बिचार एक बल है,जो तरंगों से संचरित होता है। यह बल किन परिस्थितियों में ईश्वरीय उर्जा में बदल जाता है,इसे समझने के लिए हिन्दुइज्म , जैनिज्म, बुद्धिज्म आदि विभिन्न मतों का काल विभाजन पर प्रकाश डालना आवश्यक है। सनातनी हिंदू की अवधारणा की मान्यता है कि शिव,विष्णु और ब्रह्मा का काल है।{ देखिए ब्रह्मा विष्णु शिव जी की वास्तविक उम्र ये है :ब्रह्मा जी – 72000000 (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग,विष्णु जी- 504000000 (पचास करोड़ चालीस लाख) चतुर्युग और शिवजी- 3528000000 (तीन अरब बावन करोड़ अस्सी लाख) चतुर्युग है।जैनिज्म मत के अनुसार काल- विभाजन जिस प्रकार काल हिंदुओं में मन्वंतर कल्प आदि में विभक्त है उसी प्रकार जैन में काल दो प्रकार का है- उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। अवसर्पिणी काल में समयावधि,हर वस्तु का मान,आयु,बल इत्यादि घटता है जबकि उत्सर्पिणी में समयावधि,हर वस्तु का मान और आयु, बल इत्यादि बढ़ता है इन दोनों का कालमान दस क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम का होता है अर्थात एक समयचक्र बीस क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम का होता है। अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी काल के भेद - सुषमा-सुषमा काल, सुषमा काल, सुषमा-दुःषमा काल, दुःषमा-सुषमा काल, दुःषमा काल एवं दुःषमा-दुःषमा काल। ये छः भेद अवसर्पिणी काल के हैं। इससे विपरीत उत्सर्पिणी काल के भी छः भेद हैं। दुःषमा- दुःषमा काल, दुःषमा काल, दुःषमा-सुषमा काल, सुषमा-दुःषमा काल, सुषमा काल एवं सुषमा-सुषमा काल। (1) पहला काल चार कोड़ा-कोड़ी सागर का होता है। (सुषमा-सुषमा काल)।(2) दूसरा काल तीन कोड़ा-कोड़ी सागर का होता है। (सुषमा काल)।(3) तीसरा काल दो कोड़ा-कोड़ी सागर का होता है। (सुषमा-दुःषमा काल)।(4) चौथा काल 42 हजार वर्ष कम एक कोड़ा-कोड़ी सागर का होता है। (दुःषमा-सुषमा काल)।(5) अभी वर्तमान में चल रहा पंचम काल 21 हजार वर्ष का होता है। (दुःषमा काल)।(6) छठा काल 21 हजार वर्ष का होता है। (दुःषमा-दुःषमा काल) इसके बाद उत्सर्पिणी के छः काल का समय होता है। वौद्धिज्म मत के अनुसार बुद्धिज्म में काल खंड- एक नियमित कल्प लगभग 16 मिलियन वर्ष लंबा (16,798,000 वर्ष) होता है, और एक छोटा कल्प 1000 नियमित कल्प या लगभग 16.8 अरब वर्ष लंबा होता है। इसके अलावा, एक मध्यम कल्प लगभग 336 अरब वर्ष का होता है, जो 20 छोटे कल्पों के बराबर होता है। एक महान कल्प चार मध्यम कल्प या लगभग 1.3 ट्रिलियन वर्ष है। यजिदी के अनुसार यजीदी धर्म प्राचीन विश्व की प्राचीनतम धार्मिक परंपराओं में से एक है। यजीदियों की गणना के अनुसार अरब में यह परंपरा 6,763 वर्ष पुरानी है अर्थात ईसा के 4,748 वर्ष पूर्व यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों से पहले से यह परंपरा चली आ रही है। मान्यता के अनुसार यजीदी धर्म को हिन्दू धर्म की एक शाखा माना जाता है।}उपरोक्त विभिन्न मतों के काल- खंडों का उल्लेख करना इसलिए आवश्यक है, ताकि वर्तमान विज्ञान और पुरातात्विक विश्लेषण के आधार पर सभ्यता- संस्कृति का काल निर्धारण में ईश्वर की अवधारणा को व्याखायित करने में आज का विज्ञान उलझा हुआ है। उसे सही मार्ग दर्शन के लिए परमालय और परमानन्द की आकृति को स्मरण करना होगा। जिससे इन मतों के काल- खंडों के बीच समन्वय स्थापित करना होगा। क्योंकि सभी मतों में एक कौमन बात है कि सब में कड़ोडो़ं- अरबों वर्षों पहले का अभिमत है। और यहाँ {वेदों के अनुसार ईश्वर कौन है? वेदों के अनुसार वह शक्ति बल तथा क्रिया जिसकी वजह से संसार का निर्माण हुआ है वही ईश्वर है. क्योंकि वह शक्ति हमेशा से थी और हमेशा रहेगी इसलिए वह शाश्वत है. वेदों के अनुसार ईश्वर का सबसे उत्तम नाम ॐ है. ईश्वर वह शक्ति है जो बिना भेदभाव के कर्म के अनुसार प्रत्येक प्राणी जीव आदि को कर्म फल प्रदान करती है. . बुद्धिज्म में काल खंड- एक नियमित कल्प लगभग 16 मिलियन वर्ष लंबा (16,798,000 वर्ष) होता है, और एक छोटा कल्प 1000 नियमित कल्प या लगभग 16.8 अरब वर्ष लंबा होता है। इसके अलावा, एक मध्यम कल्प लगभग 336 अरब वर्ष का होता है, जो 20 छोटे कल्पों के बराबर होता है। एक महान कल्प चार मध्यम कल्प या लगभग 1.3 ट्रिलियन वर्ष है}। उपरोक्त { गुगल के सौजन्य से प्राप्त डाटा}सभी मतों और मान्यताओं के अनुसार जो सब में कौमन है:- (१) मानव का प्रादुर्भाव अरबों वर्षों पहले हुआ। वहीं से परमालय और परमानंद की आकृति के साथ परमपींड का उदभव है। वहीं बैठकर परमानंद के रोमांचक अवस्था तक पहुँचने के लिए विभिन्न मार्ग की खोज शुरू हुई। जिसके लिए आंखों और कान का सहारा लिया गया। आंख से दृश्य और कान से श्रव्य,और फिर दोनों के मिश्रण का सहारा लिया गया। जिससेे कला, संगीत और नृत्य का अविर्भाव हुआ। ये सब कुछ मूल प्रकृति की देन है, जब अक्षर/शब्द और भाषा नहीं था। यह सब अरबों खरबों वर्षों का क्रमिक विकास है। (२) सबका काल- विभाजन अपना अपना है। जिसमें सबसे पुराना सनातन हिन्दू का है। इसी का आधार लेकर ईश्वर की अवधारणा का विश्लेषण अगले आलेख में होगा। (क्रमशः) samalak.blogspot.com, Mo.No.+917209834500, लेखक- अनिल कुमार सिन्हा ,25/01/2024 email id-samalak1984@gmail.com पता-समालक सदन ,पुरनचंदलेन,कल्याणी , मुजफ्फरपुर-842001,बिहार,भारत।

Tuesday, January 16, 2024

मोदी/ साह का नया खेल

भाजपा,अपने विश्वस्त नेताओं को घोषित - अघोषित बागी का रंग देकर दूसरे दल में भेजो,और फिर देखो जमूरे का कमाल ! अभी जितने भी प्रखर नेता वाले विपक्षी दल हैं,जिसमें मुख्य है- आप, टीएमसी, एस पी, स्टालिन की पार्टी और एक हद तक कांग्रेस भी यह खेल एम पी चुनाव 2024 तक या उसके बाद भी खेला जाएगा।

Monday, January 8, 2024

यादें २७ माह की सावी के साथ २०२३

सावी मेरो बड़ी पोती है,बड़े लड़के हैप्पी की बेटी है। उन दिनों मैं हैप्पी के साथ था। सावी के साथ मेरी दो यादें है। (१) एक बड़ा कप दूध मेरे लिए बहू निचले ताखे पर रख गई, जो सतह पर से सावी की पहुंच मे था। दूध गर्म था, सावी जब उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ी और ताखे के पास पहुंच गई तो मैं उसके पहुंच से दूर रखने के लिए कप को पकड़ कर ऊपर उठा लिया। तब सावी कहने लगी कि इशारा करते हुए कि बीच वाले ताखे पर रख दो दादाजी, वहाँ पर रखने के लिए प्रेसर देने लगी। हलांकि वह जगह भी उसके पहुंच से सतह पर से दूर था। लेकिन मैं उसके कहे जगह पर कप रख दिया। तत्क्षण वह दौड़ते हुए गई और कुर्सी खींच कर ताखे के पास ले आई और उसपर चढ कर कप के पहुंच में आ गई,कप पुनः पकड़ने लगी। फिर मैं उस कप को और ऊपर वाले ताखे पर रख दिया। वह मायुस होकर,कुर्सी से उतरी और कुर्सी को खींच कर पुनः अपने पूर्व स्थान पर रख दी। कहने का तात्पर्य यह कि कितना स्टेप आगे तत्काल सोच कर उक्त स्थान पर कप रखने के लिए प्रेरित किया जहाँ पर कुर्सी पर चढ़कर वह पहुंच जाए।आश्चर्य यह है कि २७ महीने की बच्ची के लिए तीन चार स्टेप आगे सोच लेना, है न लोमहर्षक बात। (२) उससे भी आश्चर्य जनक बात है कि अपने परिवेश और वातावरण की भावना को पहचानते हुए, एक बहुत बड़ा प्रयास करना। हुआ यों कि शाम में सावी हौल में जिम में सीखे पाठ को दुहरा रही थी और पापा हैप्पी को दीवार में सट कर खड़ा कर दियाकि। अपने हर सफल प्रयास पर ताली बजाने के लकि प्रेरित करती,स्वयं भी ताली बजाकर खुश होती। ऐसा करते हुए अभी थोड़ा ही समय हुआ था कि वह दौरते हुए मेरे रूम में आई और बोलने लगी " दादा जी चलो, चलो दादा जी, चलो........दादाजी "। मैं भी विछावन से उतर कर उसके पीछे पीछे चल दिए। जब हौल में पहुंचे तो सावी मुझे उसी दीवार से सटाकर हैप्पी से पांच फिट की दूरी पर खड़ा कर दिया और कहने लगी " इधर और आओ, इधर इधर....." मतलब कि हैप्पी से तकरीबन एक फिट की दूरी पर। फिर कहने लगी " दादाजी ऊंगली दो,दो दो...... दादाजी" मैं भी वायें हाथ की तर्जनी उंगली बढ़ा दिया। सावी उसे पकड़ कर पापा हैप्पी से कहने लगी " पकड़ो, इसे पकड़ो पापा, पकड़ो पकड़ो....." जब हैप्पी पकड़ लिया तो सावी फिर अपना करतब दिखाने लगी। अब है न यह २७ माह की बच्ची का करिश्मा,अब चाहे इसे जो कहो, जेनरेशन गैप की भावना को या फिर घर के वातावरण को सेंस करना या कुछ और। है न यह इतनी ऊंची समझ की बात। इस वाक्या को जब मैं सावी के दादी को कहा तो कहने लगी, " मुझे भी हाथ पकड़ कर अपने रूम में ले जाती है और अपने मम्मी के पलंग पर मम्मी के पास बैठाने का प्रयास करती है। वाह क्या बात है ? ।।